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कविता

पाँव जमा है रावण का

भगवत दुबे


सम्मानित हो रहे आज वे
लहू, गरीबों का जिनने
                       बेखौफ निचोड़ा है।

शिलालेख अपने लिखवाते,
रहा नहीं आँखों में पानी
शोषक शब्द हुआ अनुवादित
हरिश्चंद्र के जैसा दानी
विध्वंशक पथ पर
                       गांधी, गौतम को मोड़ा है।

राजसभा में, अब अंगद-सा
पाँव जमा है रावण का
अब मायापुराण पूजित है
तिरस्कार हो रावण का
अश्वमेध का घूम रहा
                       आंतकी घोड़ा है।

समारोह होते रहने हैं
चाहे जहाँ तबाही के
रोग निरंतर बढ़ता जाता
अपनी लापरवाही से
शल्यक्रिया अब करो
                       पका, विकृति का फोड़ा है।


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